लिंगो दर्शन का प्रभाव

लिंगो दर्शन का प्रभाव 8000 वर्ष पुर्व संस्थापित'कोया पुनेम' के अध्यात्म,निसर्ग-शक्ती और लिंगो-दर्शन का प्रभाव कालान्तर मे कई दार्शनिकों पर पडा जिनमें प्रमुख है- 1.आलम-कालाम,2.कपिल मुनी, 3.गौतम बुध्द। गोंडी धर्म के धर्मगुरु आलाम-कालाम ने कोया पुनेम के तत्वज्ञान को सांख्य-दर्शन कर रुप मे सबके सम्मुख प्रस्तूत किया । लिंगो दर्शन के तत्वज्ञान को आर्यो ने प्राय: नष्ट कर दिया था, परंतु यहा आलाम-कालाम के ही अटूट प्रयासो का नतीजा है की लिंगो तत्वज्ञान को न सिर्फ नष्ट होने से बचाया,वर्ण उन्होने तत्पश्चात उसमे एक नई जान भी फुक दी। कपिलमुनी ने सांख्यदर्शन पर आधारित "सान्ख्यसूत्र" की रचना की। "सांख्यसूत्र"की खासियत यह है की इस इरे ग्रंथ मे इश्वर या ईश्वरीय-शक्ती का जिक्र कही नही होता है;पर संपूर्णत: दर्शनशास्त्र (Philosophy) पर आधारित इस ग्रंथ को प्योर विश्व मे एक महान व पवित्र ग्रंथ का दर्जा दिया जाता है । आलाम-कालाम लगभग गौतम बुध्द के ही समकालीन थे और भगवान बुध्द को सांख्यदर्शन की शिक्षा उन्होने ही दी थी। कुच्छ बारह धर्मगुरु 'कोया धर्म' मे जन

गोंडवाना संस्कृति की आधारशिला


गोंडवाना संस्कृति की आधारशिला

अनुमाती तौर पर आज से लगभग 8000 वर्ष पुर्व भारतभूमि पर जो मानव जाति हुवा जर्ती थी,वही भारत की प्राचीनतम संस्कृति की आधारशिला मानी गई है।
मानव के पास तभी निसर्ग से जो उपलब्ध था,वह सिर्फ वन्य जिवन और वन्य प्राणियो की ही विशाल भारत भूमि पर भी लोग अपना जिवन यापन करते थे ।
और यही नही बल्कि प्योर विश्व मे और भी जहा कही मानव जाति थी उससमय, सभी और मानव जिवन और पशु-जिवन मे कोई अधिक अन्तर नही था ।
पशुओ के साथ जंगल मे लबे समय तक रहकर मानव भी पशु की ही तरह हिंसक बना चुका था।
तभी प्रकृती का आशीर्वाद से भारत मे एक महापुरुष ने जन्म लिया ।
जिनका नाम था "पारीकुपार लिंगो" । उन्होंने ही अपने नैसर्गिक ज्ञान से मानव को सुसभ्यता और सुसंस्कृति की और उन्मुख किया ।
अज्ञानी मानव-जाति को प्रकृती के न्याय एव नियमों को समझाने का दुर्गम प्रयास किया और मानव-समाज को सुनियोजीत एवं सूगठित करके नैतिक मूल्यो की आधारशिला रखी।मावन की सुख-शान्ती समाज मे ही रहकर संभव है। अकेला मानव सुख-शान्ती की प्राप्ति नही कर पाता,
इस तथ्य को पारिकुपार लिंगो ने भली-भान्ति मावन को समझाया ।
सुख और शन्ति के उत्तम समन्वय से सुसंस्कृत मावन-जिवन की रचना  की।भारतभुमी पर उन्हे के मुखवचनो स्व कोया-धर्म का आर्विभाव हुवा और यही धर्म आधारशिला बना महान प्राचीन गोंडवाना राज्य और गोंडवाना संस्कृति का।
इस तरह पृथ्वी पर सुसभ्य मानव-जिवन गोंडवाना द्वीप मे दिखाई देने लगा जिसके आदी धर्म गुरु एव प्रवर्तक बने पारिकुपार लिंगो। इसी "कोया धर्म"को 'कोइतुर','गोंड' आदी नामो से आज भी पुकारे जाते है ।
लिंगोजी ने निसर्ग की पूजा करके समाज को ज्ञान का प्रकाश दिखाया और इसलिये वृक्ष तथा प्राणी आदी की पूजा की प्रथा थी सर्व प्रथम लिंगो के ही ज्ञान प्रकाश से मानव-जाति को प्राप्त हो सका ।
उनके द्वारा स्थापित संस्कृति की जड कितनी मजबुत है, इसका अंदाज इसी बात से हो जाता है की आज भी लगभग 8000 वर्ष के उपरांत किसी न किसी रुप मे कइ तीज-त्योहारों मे वृक्ष,प्राणी आदी की पूजा सम्मिलित की जाति है। पारिकुपार लिंगो के ज्ञानदार्शन से स्थापित देवी-देवताओ के रुप गोंडी धर्म "कोया पुनेम"की धरोहर है ।

मदन महल

चन्द्रपुर गोंड किल्ला

गोंड रानी हिराई

Comments

Popular posts from this blog

गोंडवाना महाद्वीप

लिंगो दर्शन का प्रभाव

लिंगो-दर्शन (Lingo-Philosophy)