लिंगो दर्शन का प्रभाव


लिंगो दर्शन का प्रभाव


8000 वर्ष पुर्व संस्थापित'कोया पुनेम' के अध्यात्म,निसर्ग-शक्ती और लिंगो-दर्शन का प्रभाव कालान्तर मे कई दार्शनिकों पर पडा जिनमें प्रमुख है-

1.आलम-कालाम,2.कपिल मुनी, 3.गौतम बुध्द। गोंडी धर्म के धर्मगुरु आलाम-कालाम ने कोया पुनेम के तत्वज्ञान को सांख्य-दर्शन कर रुप मे सबके सम्मुख प्रस्तूत किया । लिंगो दर्शन के तत्वज्ञान को आर्यो ने प्राय: नष्ट कर दिया था, परंतु यहा आलाम-कालाम के ही अटूट प्रयासो का नतीजा है की लिंगो तत्वज्ञान को न सिर्फ नष्ट होने से बचाया,वर्ण उन्होने तत्पश्चात उसमे एक नई जान भी फुक दी।
कपिलमुनी ने सांख्यदर्शन पर आधारित "सान्ख्यसूत्र" की रचना की।
"सांख्यसूत्र"की खासियत यह है की इस इरे ग्रंथ मे इश्वर या ईश्वरीय-शक्ती का जिक्र कही नही होता है;पर संपूर्णत: दर्शनशास्त्र (Philosophy) पर आधारित इस ग्रंथ को प्योर विश्व मे एक महान व पवित्र ग्रंथ का दर्जा दिया जाता है ।
आलाम-कालाम लगभग गौतम बुध्द के ही समकालीन थे और भगवान बुध्द को सांख्यदर्शन की शिक्षा उन्होने ही दी थी।
कुच्छ बारह धर्मगुरु 'कोया धर्म' मे जन्मग्रहण कर लिंगो-दर्शन के मार्ग पर चलकर मानव-समाज मे नई चेतना की ज्योती जलाई,जिनके नाम है-
1.पारिकुपार लिंगो (संस्थापक), 2.रायलिंगो, 3.महारुलिंगो, 4.भिमाललिंगो, 5.कोलालिंगो, 6.हिरालिन्गो, 7.तुरपोलिंगो, 8.सूंगालिंगो, 9.राहुडलिंगो, 10.रावणलिंगो, 11.मयलिंगो, 12.आलामलिंगो।
इन्ही गुरुओ की स्मृति मे बारह ज्योतिर्लिंगो की पूजा भारत मे की जाती है,
जो आज भी प्रचलित है। लिंगो के ही नाम पर "शिवलिंग"शब्द प्रचलित हुवा है।

गौतम बुध्द आलाम-कालाम-कपिलमुनी

यह तो सभी जानते है की गौतम बुध्द महाराजा शुध्दोधन के पुत्र थे जिन्होने राजपाट के सुख-वैभव को त्यागकर मानव जिवन के सत्य को खोजन निकले और सांसारिक दुःख -कष्टो के निवारण हेतू अपना सारा जिवन व्यतीत कर दिया । उस समय समाज की संख्या-दर्शन का काफी प्रभाव था और कपिलमुनी रचित "सांख्यसूत्र" से भी सिध्दार्थ  (महात्मा गौतम बुध्द ) काफी प्रभावित थे। उनकी भी इच्छा थी की "सांख्यदर्शन" का अध्ययन करे और इसलिये वे वैशाली के आश्रम मे जा पहुचे जहा आलाम-कालाम रहते थे ।वही आलाम-कालाम ने गौतम बुध्द को न सर्फ सांख्य-दर्शन की शिक्षा दी, बल्कि उन्हे ध्यानमार्ग के सिध्दान्त तथा समाधि मार्ग का ज्ञान भी प्रदान किया ।
स्वय आलाम-कालाम भी ध्यानाचार्य के रुप मे कौशल जनपत मे प्रसिध्द थे। छ:वर्षो तक उनके पास रहकर गौतम बुध्द ने सांख्य-मार्ग तथा समाधि-मार्ग का उचित अध्ययन किया और इन पर दक्षता और प्राविण्यता हासिल की।
बुध्दकाल मे ब्राम्हन-दर्शन सर्वत्र छाया हुवा था लेकिन उनमे त्रुटीया की वजह से चारो और उथल-पुथल भी छाया रहता था। लेकिन ब्राम्हन-दर्शन विरोध मे जिन दार्शनिकों और महापुरुषों की सराहना हुई और उनके बताये गए दर्शन (Philisophy) को जिन मानवो को अपनाया,वे थे-

1.पुर्ण कश्यप          -------- अक्रीयवाद
2.मक्खली गोपाल    -------- नियतीवाद 
3.अजितकेस कम्बी  -------- उच्छेवाद
4.पकुघ कच्छायन ---------- अन्योन्यवाद
5.सज्जय बेलडीपुत्र -------- विक्षेपवाद 
6.भगवान महावीर  --------- चातुर्यामसवरवाद (जैन)
7.आलाम-कालाम ---------- लिंगोवाद (कोया पुनेम)
भगवान गौतम बुध्द अपने नये धर्म सर्व प्रथम उपदेश आलाम-कालाम को देना चाहते थे,पर तब तक वे अपना देहत्याग कर चुके थे।

लिंगो और गौतम बुध्द के धर्म मे समानता

पारिकुपार लिंगो ने उत्तराधिकारी के रुप मे आदिवासियो के पूर्वज गौतम बुध्द ने गुरु लिंगो के धार्मिक सिध्दान्त को परिष्कृत कर बौध्द धर्म के नाम से आगे बढाया और बिखरे हुये आदी-निवासियो को फिर से संघटित किया । फलत:भारत के मुलनिवासियो के नंद,मौर्य,गुप्त व वर्धन आदी बौध्द धर्मावलम्बि राजावो के बडे राज्य स्थापित हुये । गुरु लिंगो और गौतम बुध्द के धर्म मे निम्नलिखित समानताए है-


लिंगो 
गौतम बुध्द
1.प्रकृति की शक्ती को सर्वोपरि माना ।

2.भौतिकशस्त्र जगत को वास्तविक माना और माता पिता व पूर्वजों को देव शक्ती माना ।
3. लिंगो ने पेन्कडा की स्थापना की।
4. लिंगो ने 'जय सेवा जन सेवा' को महत्व दिया ।
5.लिंगो ने समान सामाजिक व्यवस्था सगा,गोटुल,पेन्कडा,पुनेम और मूठवा-पांच की शरन मे जाने को कहा ।
6.लिंगो ने ज्ञान द्वारा मन पर काबू पाने के उपदेश दिये ।
1.प्रकृति की शक्ती को सर्वोपरिमान इसका रचियता इश्वर नही है।
2.भौतिक जगत को ही वास्तविकता माना ।

3.गौतम बुध्द ने बौध्द विहारों की स्थापना की ।
4.बुध्द ने 'अत दीपो भव' का उपदेश दिया।
5.गौतम बुध्द ने बुध्दधर्म और संघ की शरण मे जाने को कहा ।

6.गौतम बुध्द ने भी यही उपदेश दिये । 

उपरोक्त समानताओ स्पष्ट से है की पारिकुपार लिंगो के ही कोया पुनेम को गौतम बुध्द ने बौध्द धर्म के नाम से आगे बढाया, जो ई.पू.600 से 800 तक भारत के सभी मुलनिवासीयो का धर्म बना रहा । 
अत:कोया पुनेम मानवधर्म का ही परिष्कृत रुप बौध्द धर्म है ।
सम्राट अशोक के बाद मध्य भारत के सुरगढ के राजा सुहनालसिंग ने ई.पू.159 मे 18 गणराज्यो का एक संघ बनाया था और कोया पुनेम बौध्द धर्म को राज्य धर्म का दर्जा प्रधान किया । उन्हे के वंसज सुलोपासींग और नागदेव राजाओ ने गढा कटंगा मे इस धर्म राज्याश्रय दिया । सन 358 ई. मे गढा कटंगा के रावाणवंशीय यदुराय मडावी राजा ने और सन 720 मे दक्षिण भारत के राजा भीम बल्लासिंह आत्राम ने इस धर्म को राज्याश्रय दिया । विदेशी आर्यो ने आक्रमण कर अपने राज्य स्थापित कर कोया बौध्द धर्म को क्षति पहुचाई । इसलिये कोया धर्म का रहस हुवा ।


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