लिंगो दर्शन का प्रभाव

लिंगो दर्शन का प्रभाव 8000 वर्ष पुर्व संस्थापित'कोया पुनेम' के अध्यात्म,निसर्ग-शक्ती और लिंगो-दर्शन का प्रभाव कालान्तर मे कई दार्शनिकों पर पडा जिनमें प्रमुख है- 1.आलम-कालाम,2.कपिल मुनी, 3.गौतम बुध्द। गोंडी धर्म के धर्मगुरु आलाम-कालाम ने कोया पुनेम के तत्वज्ञान को सांख्य-दर्शन कर रुप मे सबके सम्मुख प्रस्तूत किया । लिंगो दर्शन के तत्वज्ञान को आर्यो ने प्राय: नष्ट कर दिया था, परंतु यहा आलाम-कालाम के ही अटूट प्रयासो का नतीजा है की लिंगो तत्वज्ञान को न सिर्फ नष्ट होने से बचाया,वर्ण उन्होने तत्पश्चात उसमे एक नई जान भी फुक दी। कपिलमुनी ने सांख्यदर्शन पर आधारित "सान्ख्यसूत्र" की रचना की। "सांख्यसूत्र"की खासियत यह है की इस इरे ग्रंथ मे इश्वर या ईश्वरीय-शक्ती का जिक्र कही नही होता है;पर संपूर्णत: दर्शनशास्त्र (Philosophy) पर आधारित इस ग्रंथ को प्योर विश्व मे एक महान व पवित्र ग्रंथ का दर्जा दिया जाता है । आलाम-कालाम लगभग गौतम बुध्द के ही समकालीन थे और भगवान बुध्द को सांख्यदर्शन की शिक्षा उन्होने ही दी थी। कुच्छ बारह धर्मगुरु 'कोया धर्म' मे जन

सिन्धुघाती की सभ्यता "गोंडी संस्कृति की देन?"

सिन्धुघाती की सभ्यता "गोंडी संस्कृति की देन?"

सिन्धुघाटी सभ्यता की खोज निकालने का श्रेय राखालदास 
बँरजी,रायबहादुर और दयाराम साहनी को जाता है,जिन्होने मोहनजोदडो और हडप्पा के विशाल तिलों के निचे दबे हुये प्राचीन अवशेषो का पता लगाया ।
सन 1922-23 से अब तक जो खुदाई हुई उससे उस एतिहासिक समृध्द सभ्यता के प्रामाण मिले है;
जो आर्यो से आने से पहिले इस भू-भाग मे विध्दमान थी।
सर्जां मार्शल,मँक्समुलर आदी विध्दनों का कथन है की सिन्धुघाटी की सभ्यता 5000 हजार साल पुराना है।
सिन्धु सभ्यता के जनक पारिकुपार लिंगो और उनके शिष्य थे जिन्हे आर्यो अपने ग्रंथ मे दास,दस्यू,पणी,पनका,राक्षस,दानव आदी कहा है जिनके किसी समय सिन्ध नदी घाटी सप्तसिन्धु और गंगा-जमुना के दोआबा मे गणराज्य थे।
सिन्धुघाटी सभ्यता एक शिल्पिक सभ्यता थी।
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा दोनो नगरो के स्थान पर मिले मुहरे तथा मुर्तिया-
एक मुहर पर देवता का चित्र बना हुवा है। उसके सर पर सिंग या 'त्रिसूल' दिखाए गए है।यह भगवान शिव की प्रतिमा है।ऐट:आर्या सभ्यता के पुर्व सिन्धु सभ्यता मे भगवान शिव की उपासना प्रचलित थी।आचार्य मोतिरावण कंगाली का कथन है की यह मुर्ति कोया पुनेम मुठवा पारिकुपार लिंगो की मुर्ति है।
1.  एक मुहर पर देवता का चित्र बना हुआ है। उसके सर पर सिंग या 'त्रिशूल'दिखाये गए है । यह भगवान शिव की प्रतिमा है । अत:आर्य सभ्यता के पुर्ण सिन्धु सभ्यता मे भगवान शिव की उपासना प्रचलित थी।आचार्य मोतिरावण कंगाली का कथन है की यह मूर्ति कोया पुनेम मुठवा पारिकुपार लिंगो की मुर्ति है।

2. पूजा शक्ती की उपासना
एक देवी प्रतिमा मे उसे आभुसन पहना हुवा दिखाया गया है।
अत:सिन्ध निवासी मातृदेवी शक्ती की उपासना अन्न और पशुओ
की वृध्दि केलिए करते थे । देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिये बली की प्रथा भी थी। जादुटोना आवर तंत्र-मंत्र का प्रयोग इसकाल मे किया जाता था।

3. सिन्धु सभ्यता मे पशु-पूजा वृक्ष-पूजा
सिन्धु निवासी पशुओ की भी पूजा करते थे। सांप,बकरी,सूअर,गेन्डा था जंगली पशुओ की पुजाकी जाति थी।
पशुओ की पूजा के साथ वृक्ष की पूजा भी की जाति थी।
उपरोक्त संस्कृति की गोंडी संस्कृति से समानता है,इससे यह कह सकते है की सिन्धु सभ्यता गोंडी संस्कृति की देन है।

सिंधू सभ्यता के जन्मदाता कौन?
1. आर.पी.चंद्रा के अनुसार ऋग्वेद मे उल्लेखित पणी इसके जन्मदाता है।
2. डॉ.बँनर्जी शास्त्रि के अनुसार असुर सिन्धु सभ्यता  के संस्थापक थे।
3. व्हील महोदय दास और दस्यो को इस सभ्यता के जंक मानते है।
डॉ.बाबासाहेब आन्बेड़कर कहते है की पणी,असुर,दास,दस्यू और द्रविड़ सभी एक ही कुल के भिन्न-भिन्न नाम थे ये सभी नागवंशी है। व्यंकटेश आत्राम अप्नी पुस्तक "गोंडी संस्कृति के संदर्भ" मे लिखते है की भारत मे आर्य आगमन के पुर्व यहा एक सभ्य संस्कृति विध्देमान थी।
भारत के मुलनिवासी अनार्य,द्रविड़,गोंड,परधान,महार,भील,कोल,उराव,मुंडा संस्थाल आदी थे।

सिन्धु सभ्यता को किसने नष्ट किया?

1. पी.एं देशपांडे पी.टी.आई.इंडियन पोस्ट (मई  21.1987) लिखते है की आर्यो ने हड़प्पा की उन्नत सिन्धु सभ्यता को तबाह किया।
2.श्री पांडेयन ने टाईम्स आँफ इण्डिया (मई 27.1987) मे कहा है की आर्य आग लगाते थे जिन्होने सिन्धुघाती के नगरो को जला दिया।
3. पिंगट के अनुसार -आर्या ने सिन्धुघाटी की महान सभ्यता को उजाडकर रख दिया । शहारो को आग लगा दी पुरुषो की हत्या कर दी।

"ऋग्वेद के साक्ष्य"- आर्यो द्वारा क्रुर हिंसा -

1. दस्यू शहरो मे रहते थे। उनके पास अपार धन,गाये,घोड़े और रथ थे (i 53/8i103/3)
2. हे इन्द्र!तुमने सात विशाल किल्लो को तोड दिया जिनमे दास,दस्यू रहते थे। (Vl20/10)
3. हे इन्द्र!तुमने पांच हजार काले आसुरों का वध किया और उनके नगरो को उसी प्रकार नष्ट कर दिया जिस प्रकार लोग पुराने कपड़ो को फाड देते है। (lV-16/13)
4. हे इन्द्र!तुमने दस्यू शंम्बर के 100 नगरो को गिरा दिया । (Vl-31/4)
5. हे इन्द्र!तुमने सौ हजार विरो के साथ वृत्रासुर को मारा (Vl- 42/21) ऋग्वेद मे ऐसे अनेक उदाहरण है-जैसे आर्य के नेताओ ने द्रविडो के बाल-बच्चे,स्त्री-पुरुषों को बेरहमी से क्रुर हिंसा करके तिन लाख आसुर-दस्यू की हत्या की।

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